Getting My अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ To Work

अहम् अपने-आपको आत्मा समझता है। अहम् क्या है? ‘कै’। आत्मा क्या है? ‘मैं’। पर अहम् अपने-आपको आत्मा समझता है, यही गड़बड़ हो गई है। तो अहम् जब अपने-आपको आत्मा समझता है तो सोचता है कि अगर अहम् हटा तो आत्मा भी हट जाएगी। नहीं बाबा, अहम् हटा तो आत्मा नहीं हटेगी, अहम् हटा तो अहम् ही हटेगा। ‘कै’ हटेगा तो ‘मैं’ नहीं हटेगा।

जितनी उसको पता नहीं थी कि उसमें ताक़त है, उससे ज़्यादा उसकी ताक़त उठने लगती है। लेकिन वो जो ताक़त है उसका लाभ सिर्फ़ उनको मिलता है जो सबसे पहले अपनी पूरी ताक़त झोंक दें।

चाहिए कि हम दूसरों का आदर और सम्मान करना ही read more भूल जाएँ। सफलता की सीढ़ियाँ चढ़कर

और उसके भीतर बड़ी ग्लानि है, बड़ी हीनभावना है कि हम तो बड़े अरसे तक नारकीय रहे हैं। नर्क से अब उसको द्वेष भी है और डर भी। द्वेष ये है कि इतने दिनों तक नर्क में क्यों पड़े रहे और डर ये है कि पुनः नर्क में ना पड़ जाएँ। उसको लगातार यही लग रहा है कि नर्क उसका पीछा कर रहा है। तो नर्क से बचने के लिए वो लगातार भागता है, लगातार भागता है। ये भागदौड़, ये गति ही राजसिक अहम् की पहचान है।

और इसीलिए अध्यात्म में जब प्रवेश करते हो तो ऐसा लगता है जैसे मौत ही हो रही है। अनुभव किया है? ऐसा लगता है सब छिन गया, हाय हाय। केशव (पास बैठे एक श्रोता) भगा बहुत जोर से आश्रम से। "मर ही गए, भागो रे!

आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। धनराज के दोनों बड़े भाई भी हॉकी खेलते थे। धनराज भी

मानना था कि यदि वे हॉकी न खेलते तो उन्हें चपरासी की नौकरी भी न मिलती।

जहां अहंकार का वास होता है वहां नम्रता, बुद्धि, विवेक, चातुर्य कोई गुण विद्यमान नहीं होगा। घमंड जिस इंसान पर हावी होता है, वह सबसे पहला काम यही करता है कि उसके भीतर अन्य गुणों का प्रवेश न हो। व्यर्थ के अहं भाव के कारण उसकी नजर में हमेशा सब लोग निम्न स्तर के होते हैं। वह सदैव दूसरों की राह में बाधाएं उत्पन्न कर प्रसन्नता पाता है और औरों को गिराकर अपनी राहें बनाता हैं।

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दुनिया में हर व्यक्ति से बड़ा कोई न कोई अवश्य होता है और चक्र ऐसा है कि कोई भी अपने आप को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ होने का दावा नहीं कर सकता और इसका अहंकार नहीं पाल सकता। वक्त रहते अगर हम अहंकार रूपी अंधकार को दूर कर सकें तो जीवन को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण साबित होता है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम सामने वाले के साथ विनम्र व्यवहार करें, जिससे कि हमें एक अच्छा इंसान बनने में सहायता मिले और लोगों का दिल जीत सकें।

जैसे इस प्रसन्ना (पास बैठे एक श्रोता) को ये भ्रम हो जाए कि ये जो इसने टीशर्ट पहन रखी है ये इसकी खाल है। अब छः-सौ साल हो गए हैं और भयानक बदबू मार रही है टीशर्ट , ये उतारने को राज़ी नहीं है। क्यों नहीं उतार रहा?

समाज में कई ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जब प्रसिद्ध व्यक्तियों को गरीबी और मुफलिसी

मित्रों से हॉकी स्टिक उधार माँग कर वे खेलते थे। जब उनके बड़े भाई को भारतीय कैंप

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